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दोहा / भाग 5 / रामसहायदास ‘राम’

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तेरी सरल चितौनि तें, मोहे नंद किसोर।
कैसी गति ह्वैहै तके, कुटिल तरल चख छोर।।41।।

पी-पाती पाते उठी, ती छाती सियराइ।
सुनि सँदेस रस भेद सों, गई रचेद सोंन्हाइ।।42।।

उसरि बैठि कुकि काग रे, जो बलबीर मिलाय।
तौ कंचन के कागरे, पालूँ छीर पिलाय।।43।।

लाल उतार दई अली, मैं मेली उर बाल।
गई पसीने न्हाइ सो, भली चमेली माल।।44।।

निसि दिन पूरन जगमगै, आवै धोय कलंक।
जौ तौ बा मुख की प्रभा, पावै सरद मयंक।।45।।

स्याम बिन्दु नहिं चिबुक मैं, मो मन यौं ठहराइ।
अधमुख ठोड़ो गाड की, अँधियारी दरसाइ।।46।।

दीठि निसेनी चढ़ि चल्यो, ललचि सुचित मुख गोर।
चिबुक गड़ारे खेत मैं, निबुक गिर्यों चितचोर।।47।।

जुग जुग ये जोरी जियैं, यों दिल काहु दिया न।
ऐसी और तिया न हैं, ऐसी और पिया न।।48।।

आज रहे बलबीर री, बीर अबीर उड़ाय।
सोभा भाषि न जाय जो, आंखिन देखि न जाय।।49।।

रस बरसत है रावरो, तन पुलकित घनस्याम।
कहो अधर मैं कौन को, रहो अधकहो नाम।।50।।