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दोहा / 1 / रामरक्षा मिश्र विमल
Kavita Kosh से
के आपन के आन बा बहुत कठिन पहचान।
आफति तक जे साथ दे ओकरे आपन जान॥1॥
झट दे निरनय जनि लिहीं घिन आवे भा खीस।
झुक जाए कब का पता कट जाए कब सीस॥2॥
बहल हवा बहकल जिया मन में उमड़ल प्यार।
जब उनुका मुसकान पर बिखरल केस लिलार॥3॥
नेतन माथे जे मढ़े धरती के सभ दोस।
अइसन बुधिजीवी जिए धरती के अफ सोस॥4॥
गलत आदमी पद सही-सही ग़लत असथान।
जहाँ बहुलता में मिले ओकर कवन ठिकान॥5॥
दोसरा से डर के जिए ऊ नर कीट समान।
अपना से डर के जिए से सच्चा इनसान॥6॥