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दोहे - 1 / शंकरलाल चतुर्वेदी 'सुधाकर'

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होनी तो मिटहै नहीं, अनहोनी ना होय
होनीं मेंटत शम्भु-यम, अनहोनी नित होय

कृष्ण-कृष्ण रटती रहै, रसना रस कों लेय
ता सों निर्बल ना बनौ, नाम मनोबल देय

जा घर में मैया नहीं, वह घर साँच मसान
बेटा लेटा जहँ नहीं, भूत करें अस्थान

माता तौ घर सौं गई, पिता करे नहिं प्यार
ऐसे दीन अनाथ कौ, ईश्वर ही आधार

पिता भवन ना सोहती, सुता सहज अति काल
'सुता-सदन', पति का सदन, रहै तहाँ तिहुं काल

कामी, रोगी, आतुरी, अथवा हो भयभीत
बुद्धि भ्रमित इनकी कही, करें न इनसौं प्रीत