दोहे / बिरजीस राशिद आरफ़ी
काँटों का बिस्तर मिले, या फूलों की सेज
नीद द्वारे आ गई, कुछ तो या रब भेज
कल भी हम बदहाल थे,आज भी है बदहाल
कल तक लू से हम, मरे अब बारिश भूचाल
कब से है परदेस में, अब घर भेजो राम
देख रहे है रास्ता, जामुन, लीची, आम
बारिश के सुरताल पर नाचे अपना प्यार
या तो रिमझिम की तरह, या फिर मूसलधार
सब का जिस्म जलाए हैं, ख़ुद भी तपें मई-जून
सावन भागा आएगा, जो कर दूँ मैं फून
देश मे है सुख शांति ठण्डा है व्यापार
दंगे और फ़साद हों तभी बिकें अख़बार
प्रेम का बंधन देखना, हो तो चलिए गाँव
उसके आँगन पेड़ है, मेरे आंगन छाँव
प्रेम की मुश्किल है डगर बाधा है संसार
ख़ुद ही राह बनाएँगे हम हैं जल की धार
घर से बाहर शांति घर में सुख और चैन
दिन होली के रंग से दीवाली-सी रैन
युग क्या बदला बदल गई, इस जग की हर रीत
नीद उड़ी संगीत से, अर्थहीन हैं गीते