भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दो इंछावां / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
कैकेयी रै वचनां सूं
बंध्योड़ै
राजा दशरथ री
राम सूं
दो इंछावां-
भरत नैं राज
अर चवदै बरसां रो देसूंटो।
मा री मनगत सूं
बंध्योड़ै
बाबै री पण
मोभी बेटै सूं
फगत दो इंछावां-
घर छोड़'र
मती जा अळघो
अर अबै तो संभाळ
घर रो भार।