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दो दिन का मेहमान है तेरी यादों का / चाँद शुक्ला हादियाबादी
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दो दिन का मेहमान है तेरी यादों का
उसपे यह एहसान है तेरी यादों का
आतीं हें तो फिर जाने का नाम नहीं
यह कैसा रुझान है तेरी यादों का
मन मंदिर में फूल महकते रहते थे
अब गुलशन वीरान है तेरी यादों का
चाक़-गिरेबाँ सबसे छुप-छुप रोते हैं
हमपे यह अहसान है तेरी यादों का
तेरी याद के पन्ने बिखरे रहते हैं
एक पूरा दीवान है तेरी यादों का
दिल के अरमाँ जलते-बुझते रहते हैं
यह तन-मन शमशान है तेरी यादों का