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दो नैनन से मिलन को, दो नैना अकुलाएँ / शैलेन्द्र

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दो नैनन से मिलन को, दो नैना अकुलाएँ
जब नैना हों सामने, तो नैना झुक जाएँ
ओ पँछी प्यारे, साँझ-सकारे, बोले तू कौनसी बोली
बता रे, बोले तू कौनसी बोली

मैं तो पँछी, पिंजड़े की मैना, पँख मेरे बेकार
बीच हमारे सात रे सागर, कैसे चलूँ उस पार
कैसे चलूँ उस पार
ओ पँछी प्यारे …

फागुन महीना, फूली बगिया, आम झड़े अमराई
मैं खिड़की से चुप-चुप देखूँ, ऋतु बसन्त की आई
ऋतु बसन्त की आई
ओ पँछी प्यारे …

(फ़िल्म - बन्दिनी 1963)