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दो पेडल चलाता अवतार / नबीना दास / रीनू तलवाड़

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सुलेमान लादे घूमता है एक मछली का डिब्बा, एक भारी गोल टीन का
साइकिल पर घूमता है वह आस-पड़ोस के इलाकों में
बारिश में, धूप में, मछली से भरा अपना डिब्बा लिए ।
उसके हाथों को सधाया था उसके पिता ने
जिनके हाथों को सधाया था उनके पिता ने
जिनके हाथ सधे थे बाड़े के उस पार
जहाँ धान के खेत में खड़े हो वे मछली पकड़ते थे
जब मछलियाँ आती थीं और जाती थीं छोटी लहर के पार ।
पुठी, मागुर, छोटी भोकुआ, सुलेमान अपनी मछली हमें
बेचता है
उनके नाम जो वह ऐसे जानता है जैसे मछली पानी को जानती है,
पानी जो बहता है
बाड़े के इस पार और उस पार घास और असमिया बेंत को
चान्द की मिट्‍टी के चिपकती रेत को
रिझाता हुआ
जब मैं पूछती हूँ, वह मुस्कुराता है : मछलियाँ हैं उसके सख़्त
हाथ
वे हैं उसके कीचड़-सने पाँव, उसके आँखें पुठी हैं, उसका थका
मुँह है रोहू का एण्ड-समूह
मछलियाँ उसका भाग्य हैं, करारे नोट हैं या हैं रोटी के टुकड़े
उसे कहने की आवश्यकता नहीं मगर मैं जानती हूँ
सुलेमान का स्वप्न, अभी बड़ी मछली को
फँसना है उसके जाल में ।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : रीनू तलवाड़