दो शब्द / हरेराम बाजपेयी 'आश'
मैं दर्द का गीत सुनाने वहीं आया,
सिर्फ दो शब्द कहने चला आया,
मेरा तो हर भविष्य,
वर्तमान के पहले ही, इतिहास बन जाता है,
और यही तुम्हें रास नहीं आता है,
तुमने जो दर्द दिया,
मेरे लिये वरदान हो गया,
कैसे बतलाऊँ कि यह मुझ पर, कैसा एहसान हो गया,
बदला चुकाने के लिये,
शब्द नहीं है मेरे पास,
और है भी तो,
गीली-गीली आंखे, भरा-भरा सा मन, चेहरा उदास।
इस माहौल में कुछ लाल गुलाब भी है,
जिन्हें मैंने तुम्हारे लिये ही चुना है,
और मैं स्वंय बन गया हूँ नागफनी।
एक बार मैंने जब तुम्हें नाम देकर पुकारना चाहा,
तुमने माना कर दिया, यह कह कर कि,
मैं सुबह के इंतज़ार में हूँ,
अभी मुझे शाम न दो,
रहने दो अभी मुझे कोई नाम न दो,
मुझे क्या, तुम्हारी उँगलियों से रक्त बहे, बहने दो,
रक्त नहीं बहेगा, गुलाब लाल कैसे होंगे,
मुझे पीड़ा और प्यार का एहसान कैसे होगा,
तुम्हें चाहिए, गुलाबी गीत,
पर मेरे तो नागफनी से है,
जो मैंने अपने लिये लिखे है,
हम तुम्हें नहीं सुनाएँगे,
मेरे शब्दों से तुम्हारे गुलाब बिखर जाएंगे।
नहीं अब मुझे जाने दो,
मई कोई दर्द का गीत सुनाने नहीं आया,
सिर्फ दो शब्द कहने चला आया,
नाग्फ़्सनी और लाल गुलाब,
नागफनी और लाल गुलाब॥