दौर होगा बड़ा मुश्किल कभी सोचा भी न था / गिरधारी सिंह गहलोत
दौर होगा बड़ा मुश्किल कभी सोचा भी न था।
ज़िंदगी इतनी हो बोझिल कभी सोचा भी न था।
हादसे देख सड़क पर ये पिघलता ही नहीं
पत्थरों जैसा हुआ दिल कभी सोचा भी न था।
नौजवाँ सोच रहे आज किधर हम जाएँ
दूर सबकी हुई मंज़िल कभी सोचा भी न था।
काट लेता है कोई सर यहाँ दुश्मन मेरा
पर सियासत रहे ग़ाफ़िल कभी सोचा भी न था।
दहशतों ने जो बिगाड़ी है वतन की ये फ़ज़ां
आदमी होगा यूँ क़ातिल कभी सोचा भी न था।
कट रहा था ये सफर कैसे बताऊं अब क्या
आप हो ज़ीस्त में शामिल कभी सोचा भी न था।
भूलना कैसे है मुमकिन वो बहारों का समां
सूनी हो जाएगी महफ़िल कभी सोचा भी न था।
डूब जाएगा सफ़ीना भी तलातुम में मिरा
सामने जब कि हो साहिल कभी सोचा भी न था।
नाम दुनिया में सुख़न की मिले हसरत थी 'तुरंत'
शुहरतें होंगी ये हासिल कभी सोचा भी न था।