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द्रुपद सुता-खण्ड-26 / रंजना वर्मा

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दुष्टों को मिटाने वाले, गज को बचाने वाले,
आज इस दीन की विनय सुन लीजिये।
अस्मिता के हित नारी, सहती है दुख सारे,
अस्मिता के मूल्य को हृदय गुन लीजिये।
आज एक अबला की,अस्मिता है संकट में,
एक शक्ति साहस का, पट बुन लीजिये।
प्यारी सुख शैया है या, प्यारा है विरद निज,
आज इन दोनों में से, एक चुन लीजिये।। 76।।

सुनो हे कन्हाई यदि, आज बिसरायी टेक,
गंगा यमुना की गरिमा भी रूठ जायेगी।
सत्य सन्ध दीन बन्धु, दीन हितकारी प्रभु,
दीन-बन्धुता की ये, विरद झूठ जायेगी।
आशा के सुमन जो ये, सूखे विश्वास गया,
सारी जगती की आस्था, भी छूट जायेगी।
अब भी न टेक यदि, तुम ने निभायी निज,
तकदीर अबला की, इस फूट जायेगी।। 77।।

मैंने तो था पाना चाहा, एक धनुधारी को ही,
उपजी थी चाह वीरता का यश सुन के।
अंगीकार मित्रता के, हेतु किया तुम ने भी,
पांचों पांडवों में वही, एक वीर चुन के।
शर्त थी स्वयम्वर की, मत्स्य-वेध शर से ही,
धृष्टद्युम्न ने समस्या, रखी थी वो बुन के।
जीता था उसी ने मुझे, थकते नहीं थे तुम,
जिसकी प्रशस्ति सदा, कह के औ गुन के।। 78।।