भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
द्वन्द (पैरोडी) / बेढब बनारसी
Kavita Kosh से
जीवन का लेकर नव विचार
जब चला द्वन्द मुझमें उनमें,
हो गए बहुत अभिनव प्रचार
मुझपर फेंके जाते निशिदिन
तरकारी, सिरका, दधि, अचार
मैं स्वयं सतत उन देवी की,
मंगल उपासना में विभोर
पर जब वह लोढ़ा ले उठती,
मिलती न मुझे फिर शरण और
उनकी उच्छलित शक्ति बेढब;
उनका दुलार वैचित्र्य भरा
गामा की बड़ी बहन जैसे,
मुझको देती हैं सदा हरा
जब बाहु पाश में कसलेती,
बांध जाता मेरा वार-पार
जैसे खटिया में हो निवार
(कामायनी के गीत 'जीवन का लेकर नव विचार की पैरोडी)