भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धंवर डाकण / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
हाल तो बेहाल है
मुरधर सांकड़ै
कुळछणो बायरियो
हेम सूं घाल भायला
बगै थड़ी करतो चौगड़दै
रूप धार धंवर रो!
उतराधी पून पापण
बण डांफर
करै रमतां
खावै गुळाच्यां
मुरधर री छाती
घालै छेकला
हेम री साथण
धंवर डाकण
बैठगी ले गोद्यां
त्या तकात रोक्यां
मुरधर रा म्होबी
धोरयां रै ठसगी फेफ्फी!
फूस-पानका
रूंख-झाड़का
आला-गीला
तप्यां तावड़ो
करै वसीला
भुरट-मुरट
सीवण-धामण
बूई-बूर
सोधता सूरज
मरग्या झूर
धंवर घुमायो
भूंडो भूण
लेयगी जूण
कर मजबूर
अळगी दूर!
आ धंवर धूजणीं
छंटसी देखी
सूरज बापजी
आसी देखी
गोद्यां ले मुरधर नै
बिलमासी देखी
छुडा चा-पकौड़ी,
छाछ-राबड़ी
खड़ासी देखी
धोरां री गोद्यां
धोरी धरमी
चढासी देखी!