भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धकै रो मारग / नीरज दइया
Kavita Kosh से
घड़ी घड़ी चासूं
पण नीं चसै
इण पून मांय-
मैणबत्ती ।
थूं आयो
करियो हाथां रो ओटो
चसगी मैणबत्ती-
लाध्यो धकै रो
मारग ।