जीने के लिए कोई बाग़ी बने, धनवान इज़ाजत ना देगा
कोई धर्म इज़ाजत ना देगा, भगवान इज़ाजत ना देगा
रोज़ी के लिए - रोटी के लिए, इज़्ज़त के लिए कानून नहीं
यह दर्द मिटाने की ख़ातिर, मिल्लत के लिए कानून नहीं
कानून नया गढ़ने के लिए, ज़िन्दगी की तरफ़ बढ़ने के लिए
गद्दी से चिपककर फूला हुआ शैतान इज़ाजत ना देगा
जो समाज बदलने को निकले, बे-पढ़ो में चले, पिछड़ों में चले
फुटपाथ पे सोनेवालों में, और उजड़े हुए झोंपड़ों में चले
कुर्सी-टेबुल-पँखे के लिए जो क़लमफ़रोशी करता है
बदलाव की ख़ातिर सोच की वह विद्वान इज़ाजत ना देगा
रचनाकाल : 20.04.1982