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धनि धनि राजा दशरथ, धनि रे कोसलया रानी हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

इस गीत में एक निःसंतान स्त्री की करुणा गाथा का चित्रण है। वह स्त्री पुत्र की लालसा की पूर्ति और संतोष के लिए अपनी दासी से उसके पुत्र की माँग करती है। दासी उत्तर देती है-नमक, तेल जैसी चीजों का पैंचा होता है। आज तक पुत्र का पैंचा नहीं सुना गया।’ अन्त में, राजा रानी को सांत्वना देते हुए कहता है-‘तुम धैर्य धारण करो। मैं तुम्हारे लिए कठपुतला बनवा दूँगा। उसे ही देखकर संतोष करना।’ इस पर रानी अपनी अनिच्छा प्रकट करती हुई कहती है-‘कठपुतला तो न बोल सकता है, न देख सकता है। उससे मेरा धैर्य धारण कैसे होगा? वह तो और मेरे कलेजे को साता रहेगा।’ रानी ने पुत्र-प्राप्ति के लिए देवाराधना भी की, फिर भी उसकी आशा की पूर्ति नहीं हुई। यह गीत बहुत ही कारुणिक तथा वात्सल्य-प्रेम से परिपूर्ण है।

धनि धनि राजा दसरथ, धनि रे कोसिलेआ रानी हे।
हुनकॉे<ref>उन्हें</ref> के नै<ref>नहीं</ref> छिकेन<ref>है</ref> रामचन्दर, किए ल<ref>क्या लेकर</ref> धैरज धरथिन<ref>धरेंगी; धारण करेंगी</ref> हे॥1॥
अँगना बोहारैते तोहें राजाजी के चेरिया गे।
चेरिया, एगो होरिला पैंचा देबैते<ref>देती</ref>, कि ओहे ल<ref>उसे ही लेकर</ref> धैरज धरबै गे॥2॥
रानी हे, नोन<ref>नमक, लवण</ref> पैंचा हे, रानी हे तेल पैंचा हे।
रानी हे, बड़ रे जतन<ref>यतन</ref> के होरिलवा, सेहो रे कैसे पैंचा देबो हे॥3॥
चुप रहऽ चुप रहऽ रनिया, से आरो ठकुरनिया न हे।
रानी हे, काठ के कठपुतली देभौं<ref>दूँगा</ref> बनबाई, कि ओहे ल धैरज धरिहऽ हे॥4॥
राजा हे, काठ के कठपुतली मुखहुँ न बोलै, नैनमों<ref>आँखों से भी</ref> नाहिं ताकै<ref>देखता है</ref> हे।
राजा हे, कैसे कै धरबै रे धैरजबा, कलेजवा मोरा सालै हे॥5॥
कासी सेबलाँ<ref>सेवन किया; आराधना की</ref> कुसेसर<ref>संभवतः विश्वेश्वर का विकृत रूप; कुशेश्वरस्थान नामक तीर्थस्थान</ref> सेबलाँ से, आरो आदित बाबा हे।
राजा, सेबलाँ में बाबा बैजनाथ, कि तैयो<ref>तो भी</ref> मोरा नै आस पूरलै<ref>पूरी हुई</ref> हे॥6॥

शब्दार्थ
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