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धनी धरमदास / परिचय
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कबीरदास के बाद धरमदास कबीर-पंथ के सबसे बडे उन्नायक थे। इनका जन्म बघेलखंड के बाँधोगढ स्थान में एक वैश्य कुल में हुआ था। प्रारंभ से ही इनमें भजन, पूजन, तीर्थाटन और दान-पुण्य की प्रवृत्ति थी। कबीर का शिष्य होने के पश्चात् इन्होंने निर्गुण ब्रह्म का चिंतन आरंभ किया। समस्त संपत्ति दीन-दुखियों को लुटा दी तथा सत्तनाम के बैपारी हो गए। इनकी स्फुट रचनाएँ ही मिलती हैं। 'सुख निधान इनका प्रधान काव्य है। इनकी बानी में प्रेम, आर्तभाव तथा दास्य-भक्ति की प्रधानता है। इनकी भाषा पर पूर्वी का प्रभाव है।