भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धन्यवाद-ज्ञापन / विष्णु नागर
Kavita Kosh से
धन्यवाद ज्ञापन के बाद
कार्यक्रम समाप्त हुआ
लोग अपने-अपने घर
(या कहीं और चले गए)
उन्होंने खाना खाया, टी०वी० देखा
और सोने चले गए
नींद में फिर से आयोजक
न जाने क्यों चला आया
उसने इनका, उनका, विनका
जाने किन-किन का
यहाँ तक कि उस कार्यक्रम में उपस्थित
मक्खियों-मच्छरों तक का धन्यवाद किया
सिर्फ़ वह उनका नाम लेना भूल गया
जबकि ये तो मंच पर उपस्थित थे
ये चौंक कर
बल्कि घबराकर बिस्तर से उठ बैठे
उसके बाद रात भर ये सोचते रहे, कुछ-कुछ
सुबह उन्होंने पहला काम यह किया
कि आयोजक को फ़ोन किया
उससे कहा- 'तेरी ऐसी-तैसी'
और फ़ोन रख दिया
फिर गाने लगे
टि ट रि ट् टी