भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धन्य धरा बुंदेली / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धन्य धरा बुंदेली है जा,
धन्य धरा बुंदेली|

रामलला कौ नगर ओरछा,
कित्तो लोक लुवावन|
कलकल,हरहर बहत बेतवा,
कित्ती नौनी पावन|
बीच पहारन में इतरा रई,
जैसें दुल्हन नवेली|
धन्य धरा बुंदेली है जा,
धन्य धरा बुंदेली|

वीर नारियां ई धरती की,
रईं दुस्मन पे भारी|
जान लगाकें लड़ी लड़ाई,
जीतन कबहूं ने हारीं|
जुद्ध भूम में लच्छमी बाई,
तलवारन से खेली|
धन्य धरा बुंदेली है जा,
धन्य धरा बुंदेली|

गौंड़ बंस की रानी ने तो,
कैसो कहर ढहाओ|
दुर्गावती नाम सुनकें तो,
अकबर लौ चकराओ|
सिंगौरगढ़ में रानी की,
ठाँड़ी अबे हवेली|
धन्य धरा बुंदेली है जा,
धन्य धरा बुंदेली|

फागें कवि ईसुरी कीं,
दुनियाँ में रंग जमा रईं|
बूढ़े बारे लोग लुगाई,
बिटियां लौ अब गा रईं|
एक एक चौकड़िया कित्ती,
मीठी और रसीली|
धन्य धरा बुंदेली है जा,
धन्य धरा बुंदेली|

छत्रसाल की तलवारन ने,
कैसी धूम मचाई|
जित जित घोड़ा ने मुख कीनो,
उत उत फत्ते पाई|
चंबल टमस नरबदा जमुना,
लौ रई सत्ता फैली|
धन्य धरा बुंदेली है जा,
धन्य धरा बुंदेली|

ब्याओ सादियन में हरदौल,
अबे तक पूजे जा रये|
सबरे काम छोड़ कें मम्मा,
चीकट लेकें आ रये|
लड़ुआ जल्दी परसो मम्मा,
पंगत अब लौ मेली|
धन्य धरा बुंदेली है जा,
धन्य धरा बुंदेली|

आल्हा जैसे वीर बहादुर,
ई धरती पे आये|
मरे ने कबहूं काऊ के मारे,
ई सें अमर कहाये|
दुस्मन खों तो ऐंसे पौलो,
जैसें गाज़र मूली|
धन्य धरा बुंदेली है जा,
धन्य धरा बुंदेली|

सर‌नागत खों सरन दये में,
बुंदेली रये आगे|
समर भूम सें हटे कबहूं ने,
अपनी पीठ दिखाकें|
कबहूं ने छोड़ी भासा अपनी,
कबहूं ने अपनी बोली|
धन्य धरा बुंदेली है जा,
धन्य धरा बुंदेली|