भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धन जोबन में सन्नाई / हरियाणवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धन जोबन में सन्नाई जैसे पक रही मूंगफरी सी
अब बढ़ने पर रही है सटके रोजनरी सी
काजर मत सारै, चन्दा ग्रहण परैगौ
मुख पै पल्ला लार कोई नर लूम मरैगो