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धब्बे / अनुक्रमणिका / नहा कर नही लौटा है बुद्ध
Kavita Kosh से
इधर से देखो तो यहाँ दिखता है दाग़
उधर से वहाँ
इधर उधर के
मिश्रण के अनगिनत उपायों
के बीच आईने में
दिखते ही रहते हैं धब्बे
धरती पर कब से
ये धब्बे आदमी का पीछा कर रहे हैं
आदम के चेहरे पर थे धब्बे
या साँप की नज़र में
राम, रावण, सीता या यूनानियों की हेलेन
का बहुत सारा क़िस्सा इन्हीं धब्बों का है
बहुत सारी लड़ाइयाँ, बहुत सारे वैचारिक ढकोसले
धब्बों से ही पैदा हुए
वक़्त के साथ
जटिल हुआ है पहचानना कि क्या धब्बा है और क्या नहीं
लोग डरते हैं कि सफ़ चमकता चेहरा
क्यों कैसे छिप गया है।
जो आदम से आज तक का इतिहास नहीं छिपा सका।