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धमकच्चरू / पढ़ीस

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बड़े भय्या उकीली<ref>वकालत</ref> का अँगरखा ओढ़ि लीन्हिनि हयि।
इललु0 बी0 का कठिना कंठा गरे मा बाँधि लीन्हिनि हयि॥
रही कुछ हाँसियति, गहना गरीबी मा गिरउँ गॉठ्यन।
पढ़ाई पूरि होतयि दामु-दामुयि पूरि दीन्हिनि हयि॥
कच्यहरी जाति हयिं रोजुयि, खुबयि हँसि-हँसि बँहसि ब्वालयिं।
मुलउ महिना की म्यहनति मा रूपयिना आठ पायिनि हयि॥
बतायन बात बनिया की, महाजन क्यार भगमच्छरू<ref>आपाधापी, अव्यवस्था</ref>।
कहिनि, लड़ि ल्याब कानूनयि, बड़ि घातयि बतायिनि हयि॥
करयिं झँूठी का साँची, साँचू का पत्तालु पहुँचावयिं।
बड़े हुसियार हयिं हमका जज्ज साह्यब बतायिनि हयि॥
छः माही बीति कोठी के चढ़ी कुड़की क्यरावा की।
महाजन के रूपय्या, आपु मोटुकाटु लयि लीन्हिनि॥
पढ़ीसन<ref>विद्वानों, जानकारों, ज्ञानी</ref> की पढ़ीसी<ref>बिद्वता, जानकारी, ज्ञान</ref> आजु द्याखउ तुम भलेमंसउ।
पढ़िनि पोथी, परे पाथर पंडिताई क चीन्हिनि हयि।

शब्दार्थ
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