धरती के गुरुत्वाकर्षण की याद / आन्द्रेय वाज़्नेसेंस्की
आसानी से खराब हो जाते कवियो!
क्यों भूल जाते हो
सफलता मिलती है तभी
जब हम सफल हो जाते हैं कुछ कहने में।
दिन रात बनाते रहो तस्वीरें, ओ चित्रकारों!
गुरुत्वाकर्षण का बोझ सॅंभाले हाथों से।
सिनेकर्मियो! खींचते रहो दिन-रात तस्वीरें
उस आयाम में फलों के गिरने की
जिसमें गुरुत्वाकर्षण की शक्तियों में संतुलन बैठा कर
शिशु चूसता है स्तन स्वस्थ इहलौकिक देवियों के।
पूरा करो ऑक्सीजन का अभाव।
वो देखा-थैलियों में बंद कर रहा है मनुष्य हरियाली,
वो देखो-किस तरह वह दुहता है पेड़ों से ऑक्सीजन!
कितनी बोझिल होती है भारहीन स्वतंत्रता में जिंदगी!
पाप की तरह उठाता फिरता है मनुष्य लोहे का बट्टा,
साथ में होते हैं आक्सीजन के पैकेट
नारियल की तरह फोड़ कर उन्हें वह पीता है ऑक्सीजन।
बार-बार महसूस होता है उसे भूला हुआ गुरुत्वाकर्षण
जिस तरह ऊपर उठाने पर महसूस करता है उकाब मेमने का वजन,
अपनी बेचैनी के बारे वह बताता है अपनी पत्नी को,
पत्नी का उत्तर होता है -
'मेरा भी तो भारी है पैर।'