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धरती माथै कविता / नीरज दइया
Kavita Kosh से
हणै ई म्हारा सबद
म्हारी पीड़ री साख भरै
म्हारा हेताळू सबद
दाळ-रोटी मांय मौज करै ।
भायला !
म्हैं सबदां रो
बाजीगर नीं
कारीगर बणणो चावूं
म्हैं आभै माथै नीं
धरती माथै उतरणो चावूं ।