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धरती वफ़ा की, इश्क़ का अम्बर तलाश कर / समीर परिमल
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धरती वफ़ा की, इश्क़ का अम्बर तलाश कर
आँखों में मेरी प्यार का मंज़र तलाश कर
बाहर से देखने पे नज़र आ न पाएँगे
रिश्तों को तू ज़मीन के अंदर तलाश कर
कमरे की तीरगी पे यूँ रोना फ़िज़ूल है
जा, चाँदनी के नूर को छत पर तलाश कर
ज़ाया न कर ये वक़्त तू रहबर की आस में
आ मेरे साथ मील का पत्थर तलाश कर
बेहतर तो मिल ही जाएँगे शायर कई तुझे
गर हो सके, 'समीर' से बदतर तलाश कर