भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धरती हा पाटी पारे हे / प्रमोद सोनवानी 'पुष्प'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धरती हा पाटी पारे हे,
देख तो भईया।
बेनीं गथाथे बड़े बिहिनिया,
तब तो दिखथे बढियाँ।

केवती केवरा के सुघर फुँदरा
पानी गिराथे कारी बदरा।
बाली धान के लहलहाथे,
पूजा करथें तिरिया।

धरती हमर जीवन दाता,
सिंगारो रे धरती माता।
खेती करईया मइनखें मन अब तो,
धान के खा लो किरिया।