भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धरती / मनमोहन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धरती को याद है
अनगिन कहानियाँ

धरती के पास है
एक छुपी हुई पोटली

नाक पर लटकी है
रुपहली गोल ऐनक

पोपले मुँह में
जर्दा रखे धीमे चिराग में
तमाम रात कथरी में पैबन्द लगाती

झुर्रियों वाली बूढ़ी
नानी है धरती