भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धरती / मनमोहन
Kavita Kosh से
धरती को याद है
अनगिन कहानियाँ
धरती के पास है
एक छुपी हुई पोटली
नाक पर लटकी है
रुपहली गोल ऐनक
पोपले मुँह में
जर्दा रखे धीमे चिराग में
तमाम रात कथरी में पैबन्द लगाती
झुर्रियों वाली बूढ़ी
नानी है धरती