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धरम ! / दुष्यन्त जोशी
Kavita Kosh से
म्हूं चावूं
कै धरम करूं
पण
कियां करूं
स्यात
सांच बोलणौ
करदयूं सरू
सांच सूं बडौ धरम
काईं हुय सकै
स्यात नीं।