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धरा पर यदि विपद हो तो स्वयं बन ढाल जायेंगे / रंजना वर्मा
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धरा पर यदि विपद हो तो स्वयं बन ढाल जायेंगे।
बने ग़र जूतियाँ इसकी तो अपनी खाल लायेंगे॥
हमारा गाँव भू का स्वर्ग प्राणों से हमें प्यारा
सताने क्यों हमें फिर जान के जंजाल आयेंगे॥
पहनकर चीथड़े त्यौहार हम अपने मना लेंगे
विभिन्न व्यंजन न हों तो सिर्फ़ रोटी दाल खाएंगे॥
अदालत या कचहरी में भला हम किसलिए जायें
समस्या यदि कठिन होगी तो हम चौपाल जाएंगे॥
नहीं प्रतिद्वंदिता करनी हमें है नगर शहरों से
हमारे तो लिए यह खेत स्वागत माल लाएंगे॥
पसीने की चमकती बूँद कर देगी हमें पावन
भला किस काम अपने फिर ये छापा माल आएंगे॥
नहीं देखा जलधि हमने बहुत ही दूर है गंगा
यहाँ तो नीर सुरसरि का ये पोखर ताल लाएंगे॥