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धरा बनके तुम / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
30
शक्तिरूपा हो
हो प्राण संजीवनी
मुमूर्षा में मैं
31
तुम्हारा मन
मंदिर है पावन
शब्द आरती।
32
भाव सुमन
छू लेते अंतर्मन
आत्मा हरसे।
33
मेरी झोली में
तेरे नेह के फूल
हरेंगे शूल।
34
तुम्हारा प्यार
मेरे सुकर्मों का ही
पुण्य प्रसाद।
35
अधरों -खिली
तेरी मीठी मुस्कान
जीवन- दान।
36
जन्मों से परे
तुमने मेरे गीत
होंठों से छुए
37
चाह आखिरी
मेरे ये प्राण बनें
तेरी बाँसुरी।
38
गले लगालो
धरा बनके तुम
मुझे छुपा लो।
39
अधर -मधु
अधरों से मैं पी लूँ
तुझमें जी लूँ।
40
तुम्हारा प्यार
सर्दी की उदासी में
गर्म चाय- सा
41
मधु मुस्कान
अवसाद मिटा दे
सिंचित प्राण।
42
खिलखिलादो
मन- अम्बर तम
दूर भगादो।
43
अपने अश्रु
मुझे दान कर दो
झोली भर दो।
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