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धरोहर / नवीन ठाकुर ‘संधि’

हय जिनगी रोॅ बाद, हम्में की करबोॅ याद,
मतुर रही जैतै, हमरोॅ जिनगी रोॅ "धरोहर" सुस्वाद।
 तोहेॅ माटी में, दफनावोॅ,
 याकि मुखाग्नि में जलावोॅ।
 फेरू, पानी में बहाबोॅ,
 की, धारा पेॅ गँमाबोॅ।
हय, सब्भै केॅ जनाय केॅ करभोॅ बरबाद,
हय, जिनगी रोॅ बाद, हम्में की करबोॅ याद,
मतुर रही जैतै, हमरोॅ जिनगी रोॅ "धरोहर" सुस्वाद।
 बातोॅ-बातोॅ में मारै-लेॅ आबै छोॅ उमकी,
 तोरोॅ श्राद्ध नै करबोॅ, हय छोॅ धमकी।
 हमरोॅ कमालोॅ, हमराय खवाय लेॅ जाय छोॅ ठमकी,
 फेरू मौका नै मिलतौ, मारी-लेॅ भटकी,
 हमरोॅ कृति केॅ देखी-सुनी मन्ने-मन्ने करभेॅ फरियाद।
हय जिनकी रोॅ बाद, हम्में की करबोॅ याद,
मतुर रही जैतै, हमरोॅ जिनगी रोॅ धरोहर सुस्वाद।
 जिंदा में सब्भै येॅहेॅ रं सब्भै केॅ कोषै छै,
 एक मुट्ठी ओन दै-केॅ, कुकुर नॉकी पोसै छै,
 वेशी बोल-ला पेॅ सब्भैं दुसय छै,
 सेवा करै-लेॅ कहतैॅ बेटॉ त्तेॅ, दुन्हूँ जीवोॅ में खसै छै,
वीरलेॅ कोय श्रवण कुमार छेॅ, "संधि" , जे युगोॅ लेली हौ छेॅ अपवाद,
हय जिनगी रोॅ बाद हम्में की करबोॅ याद,
मतुर रही जैतै, हमरोॅ जिनगी रोॅ धरोहर सुस्वाद।