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धर्म के ठेकेदारां नै ये भोले लोग बहकाए / रामधारी खटकड़

धर्म के ठेकेदारां नै ये भोले लोग बहकाए
म्हारे देश म्हं बिन मतलब के कितने कत्ल कराए
 
पाखण्डां म्हं फंसा कै इननै, कर दिए मोटे चाळे रै
मन्दिर-मस्जिद के झगड़ां नैं, ठावैं बोटां आळे रै
अपणा मतलब काढ़ण खातर, खींच दिए अडै़ पाळे रै
इन्सानां की कद्र करैं ना, भीत्तरले के काळे रै
होए ज्यान के गाळे रै, घर लोगां के जळवाए
   
सन् 47 म्हं देश बांट कै, बहोते खून बहाया था
मारकाट करी बदमासां नै, लूट का जाळ फैलाया था
छोटे-छोटे बाळक मारे, औरतां पै जुल्म कमाया था
कर्म-काण्ड करण आळ्यां नै, आग मैं घी गिरवाया था
फायदा उननै ठाया था, जो कुर्सी के थे तिसाए
   
असली मुद्दे भुला दिए जो चाहिए जिन्दगी म्हारी म्हं
अंधविश्वास फैला कै इननै, रोक्या राम पिटारी म्हं
धन आळ्यां की चाल सै लोगो, खोल सुणा द्यूं सारी मैं
जनता टोटे म्हं फंस री, फिर गेरैं फूट बिचारी म्हं
जे आज्या अकल तुम्हारी म्हं, ना उजडैं बसे-बसाए
 
धन आळे न्यूं चाहवैं सैं, ये गरीब रहैं लड़-भिड़कै
अफवाह ठा दे बुरी-बुरी, फिर बादळ की ज्यूं कड़कै
मरवाणा उननै चाह्वै सैं, जो जीवैं सैं मर-पड़कै
राम-रहीम बी मदद करैं ना, दोनूं लिकडै जड़कै
रामधारी की आंख म्हं रड़कै, जो फूट गेरणा चाहे