धर्म रक्षा ना जाति रक्षा / रणवीर सिंह दहिया
एलिस ने जेब से मालकम वाली घोषणा निकाली। दरबारियों के कलेजे धक-धक करने लगे। घोषणा पढ़ने से पहले दरबार में सन्नाटा था। झांसी राज का उंट न जाने किस करवट बैठे। अन्ततः घोषणा की गई। रानी झांसी की झांसी नहीं रही। परदे के पीछे से गूंज उठा था ये स्वर‘‘मैं अपनी झांसी नहीं दूगीं’’। झांसी के इतिहास की इसी दुखद घड़ी से युद्ध की तैयारियां शुरू हुई थी। कुछ लोगों ने विरोध भी किया रानी का। कहा- रानी साहिबा युद्धक्षेत्रा में लड़ना तो क्षत्रियों का काम है। रानी ने शलीनता से जवाब दिया- हमे कोई बताये क्षत्राीय धर्म मन से है या जाति से। चुप्पी रही। फिर श्याम चौधरी बोले- हमारे पूर्वजों ने सोच समझ कर कायदे कानून बनाये होंगे। रानी ने जवाब दिया- नियम कायदे बनते हैं समय देखकर। तब वही युगधर्म था अब यही युग धर्म है। श्याम चौधरी फिर बोले- भला धर्म भी कोई बदलता है, उसके कानून रीति रिवाज परम्परायें तो हमेशा एक जैसे रहते हैं। तुरन्त जवाब में बोली थी रानी- अब यही समझ लो कि समय को धर्म के नये कायदोें की जरूरत है। झांसी को कुछ नये वीर योद्धा चाहिये वे चाहे महिला हों या पुरूष और किसी भी जाति धर्म तथा वर्ग के हों। रानी ने इसी समझ के तहत शायद कमाण्डर बनाया। झलकारी ने जात धर्म से उफपर उठकर झांसी की रक्षा की। क्या बताया भलाः
धर्म रक्षा ना जाति रक्षा, देश रक्षा पै लड़ी झलकारी॥
चूड़ी पहनना छोड़ समाज के, साहमी अड़ी झलकारी॥
देश की रक्षा खातर उसनैं बन्दूक हाथां मैं ठाई थी
झांसी पै मैं ज्यान झोंक दयूं मन-मन मैं कसम खाई थी
ना पाछै मुड़कै लखाई थी बाघ तै भिड़ी झलकारी॥
रेशमी कपड़े और दुशाले नहीं चाहे महल अट्टारी
ना रानी ना पटरानी थी वा थी कोरी जात की नारी
सामन्त ना थी जागीर दारी गरीबी मैं खड़ी झलकारी॥
भोजला गाम की छोटी जात मैं जन्म लिया झलकारी नै
बचपन तै बाघ तै भिड़ी शिकार किया झलकारी नै
इतिहास रच दिया झलकारी नै अहम कड़ी झलकारी॥
उसकी गेल्यां दुभान्त करी देश के इतिहास कारां नै
रणबीर कम जिकर करया देश के म्हारे सूत्राकारां नै
समाज के ठेकेदारां नै खूब झेलनी पड़ी झलकारी॥