भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धर्म सिद्धान्त / लियू लिब्सेकल / श्रीविलास सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं रहती हूँ दिनों और काग़ज़ की शैय्या में
एक बदरंग होते स्वेटर के धागों के बीच
जिसका सूत उधड़ने लगा है ।

मैं नहीं रही कभी दूर अपने धर्म सिद्धान्तों से ।

बुनता होता है समय और मैं इकट्ठा करती होती हूँ शब्द
क़लमों और फेंक दिए गए नोट्स का एक क़ब्रिस्तान ।

मैं हूँ सुस्त चाल वाली और अपवित्र ।

मैं डूब जाती हूँ तकलीफ़ में
उसे पहन लेती हूँ इस पुराने स्वेटर की भाँति
घिस चुका हुआ और अभागा ।

मैं हूँ दुर्बल इस अव्यवस्था में । 

अँग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीविलास सिंह

लीजिए, अब यही कविता अँग्रेज़ी भाषा में पढ़िए
              Liyou Libsekal
                 GOSPELS

I live in a bed of days and paper
between the threads of a graying sweater
strands of yarn raveling out.

I’ve never been far from my gospels.

Hours weave, and I collect words
a graveyard of pens and discarded notes.

I am slow moving and unholy.

I sink in the discomfort
wear it in like this old sweater
frayed and ill fated.

I am fragile in this disorder.