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धान लुवाई / कोदूराम दलित

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चल संगवारी ! चल संगवारिन, धान लुए ला जाई,
मातिस धान-लुवाई अड़बड़, मातिस धान-लुवाई ।

पाकिस धान-अजान, भेजरी, गुरमटिया, बैकोनी,
कारी-बरई, बुढ़िया-बांको, लुचाई, श्याम-सलोनी ।

धान के डोली पींयर-पींयर,दीखय जइसे सोना,
वो जग-पालनहार बिछाइस, ये सुनहरा बिछौना ।

गंगाराम लोहार सबो हंसिया मन-ला फरगावय,
टेंय-टुवाँ के नंगत दूज के चंदा जस चमकावय ।

दुलहिन धान लजाय मनेमन, गूनय मुड़ी नवा के,
आही हंसिया-राजा मोला लेगही आज बिहा के ।

मंडल मन बनिहार तियारयं, बड़े बिहिनिया ले जाके,
चलो दादा हो!, चलो बाबा ! कहि-लेजयं मना-मना के ।

कोन्हों धान डोहारे खातिर,लेजयं गाड़ी-गाड़ा,
फ़ोकट नहीं मिलयं तो देवयं, छै-छै रुपिया भाड़ा ।

लकर-धकर सुत- उठके, माई-पीला बासी खावयं ,
फेर सूर, हँसिया, डोरी धर, धान लुए बर जावयं ।

चंदा, बूंदा, चंपा, चैती, केजा, भूरी, लगनी,
दसरी, दसमत, दुखिया, धेला, पुनिया, पांचो,फगनी ।

पाटी पारे, माँग संवारे, हँसिया खोंच कमर-माँ,
जायं खेत, मोटियारी जम्मो, तारा दे के घर-माँ ।

छन्नर-छन्नर पैरी बाजय, खन्नर-खन्नर चूरी,
हांसत,कुलकत,मटकत रेंगय, बेलबेलहीन टूरी ।

भांय-भांय बस्ती हर बोलय, खेत-खार रुपसावय,
देख उहाँ के गम्मत, घर के सुरता घलो न आवय ।

कोन्हों रंग-रंग के कहिनी-कथा सुनायं लहरिया,
कोन्हों मन करमा फटकारायं, कोन्हों गायं ददरिया ।

भौजी के भाई हर नाचय, पहिरय चिरहा-फरिया,
फेर बटोर करँगा-वरंगा, वो चरिह्या, दू-चरिह्या ।

राम-लखन के पल्टन जस,जब सब बनिहार झपावयं,
चर्र-चर्र, लू-लू के छिन-माँ कतको धान गिरावयं ।

सांकुर-सांकुर पांत धरयं, ते-ते मन तो अगुवावयं,
चाकर-चाकर, पांत धरयं, जे-जे मन तें पछुवावयं ।

काट-काट के धान मड़ावयं, ओरी-ओरी करपा,
देखब-माँ बड़ निक लागय, सुन्दर चरपा के चरपा ।

लकर-धकर बपुरी लैकोरी, समधिन हर घर जावय,
चुकुर-चुकुर नान्हें-बाबू-ला, दुदू पिया के आवय ।

ताते च तात ढीमरीन लावय, बेंचे खातिर मुर्रा,
लेवयं दे के धान सबो झिन, खावयं उत्ता-धुर्रा ।

दीदी लूवय धान खबा खब, भांटो बांधय भारा,
अउहा, झउहा बोहि-बोहि के, लेजय भौजी ब्यारा ।

अन्न-पूरना देबी के मंदिरेच साहीं ठौंका,
सुग्घर-सुग्घर खरही गाँजय, रामबती के डौका ।

रोज टपाटप मोर डोकरी-दाई बीनय सीला ,
कूटय-पीसय, राँधय-खावय, वो मुठिया अउ चीला ।

धीरेबाने रोज उखानय, मोर बाबा हर कांदी,
क्लेश किसानन के कटही अब, जय-जय हो तोर गाँधी ।

घर घुसवा बड़हर, खेती के मरम भला का जानयं,
कोन्हों पेरयं जांगर, कोन्हों हलुवा-पूड़ी छानयं ।

तइहा के ला बइहा लेगे, आइस नवा जमाना,
कहय विनोबा-चैतौ दादू ! पाछू मत पछताना ।

जउन कमाहै, तेकरेच खेती-बारी अब हो जाही,
अजगर साहीं खायं बइठ के, ते मन करम ठठाहीं ।

जाड़-घाम, बरखा के दु:ख-सुख, सहय किसान बिचारा,
दाई-दादा असन डारय, सबके मुंह-माँ चारा ।

पहिनय, ओढय, कमरा-खुमरी, चिरहा असन लिंगोटी,
पीयय पसिया-पेज, खाय कनकी-कोंढ़ा के रोटी ।

जेकर लहू-पसीना लक्खों रंग-महल सिरजावय,
सब-ला सुखी देख, जे छितका कुरिया-माँ सुख पावय ।

अइसन धरमी चोला के गुन, जीयत भर हम गाबो,
सोला-आना सहकारी खेती-ला सफल बनाबो ।

पावयं सब झन अन्न-वस्त्र, घर-कुरिया,रुपिया-पैसा,
सुखी होयं सब पालयं घर-घर, गइया, बैला, भैंसा ।

रहय न पावय इहाँ करलई, रोना अउर कलपना ।
सपनाए बस रहिस इहिच, बापू-हर सुन्दर सपना ।