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धान / मनोज कुमार झा
Kavita Kosh से
कमजोर दिखता यह पौधा न तेज धूप से डरता है
न कमरतोड़ पानी से
चाहिए इसे बस पत्ते भर धूप और जरूरत भर पानी
डूबा हो कंठ तो भी न सोखेगा एक बूँद ज्यादा
बाँट लेगा हर एक बराबर-बराबर ।
जरा सी हड़बड़ी नहीं खलिहान पहुँचने की
सातवें फूल तक करता है इंतजार गभाने के लिए
एक दे देता है जगह दूसरे को फैलने के लिए
कितना मुश्किल यह ऐसे समय में
जब कन्याभ्रूण से छीनते हैं माता-पिता गर्भाशय का पवित्र कोना
बरजोरी किसी पुरुषभ्रूण के लिए।
हीरा सदा के लिए उपजता यह 'गिरहथ' के खेत में
मेरे लिए पोखर किनारे दसकठवा में
और शासकों के लिए तो बस यूँ ही, उपज जाता है
और पहुँच जाता है प्लेट में, पुलाव बनकर।