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धार पर पीले पुष्पों की बारिश-1 / अरुण देव

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उस देह में
एक रुकी हुई नदी थी
छूते ही उमड़ पड़ी
वर्षों के खर-पतवार कीच-क्लेश बह गए
बह गया बासीपन, उदासी
स्वच्छ जल में अपना हँसता हुआ चेहरा देखते हुए
उसे सहसा विश्वास नहीं हो रहा था
धार पर यह पीले पुष्पों की बारिश थी ।