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धार पर पीले पुष्पों की बारिश-2 / अरुण देव
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दर्पण पर धूल की एक परत थी
उदासी ने लिखा था वहाँ एक शोकगीत
वर्जना के किले में उसकी आकांक्षा
जितने कि उसे बसंत
पहली दस्तक पर
धीरे से खुले भारी दरवाज़े
भीगे अँधेरे का रहस्य धीरे से अनावृत हुआ
आरक्त तलवों के पास आ बैठा सूर्य
उस खीले पुष्प की लय में
परागकण कि तरह खिलखिलाता रहा उसका कण्ठ
यह हँसी उसकी अपनी ही थी