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धीरज टूटलै/ अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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आकाशोॅ के धीरज टूटलै,
टूटलै प्यार आधोॅ में
अरमानोॅ के दीया बूझलै
आग सुलगलै भादोॅ में ।

सोॅन आखार आरो भादोॅ कानलै
भरी-भरी आँखें लोर हो
गाछ-बिरिछ आरो रोपा काँनलै
दिन-रात आरो भोर हो ।

खेतोॅ में रोपनी विरहा गावै
हरवाहा मोहना गीत रे
जरला देहोॅ केॅ जारै छै
नै आबी केॅ हमरोॅ मीत रे ।

केना कहै छोॅ रहै लेॅ हमरा
ठोरोॅ पर टंगलोॅ प्राण छै
टुकटुक ताकौं रसता तोरोॅ
हमरौ मुख अमलान छै ।

लिखोॅ की कहिया आबै छोॅ ?
आरो हमरा लै जाबै छोॅ
गाँव टोला के कानाफूसी सें
मिली जैतेॅ हमरा त्राण हो ।