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धीरे धीरे मचल ऐ दिल-ए-बेक़रार / कैफ़ी आज़मी
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धीरे धीरे मचल ऐ दिल-ए-बेक़रार
कोई आता है
यूँ तड़प के न तड़पा मुझे बालमा
कोई आता है
धीरे धीरे ...
उसके दामन की ख़ुशबू हवाओं में है
उसके क़दमों की आहट फ़ज़ाओं में है
मुझको करने दे, करने दे सोलह सिंगार
कोई आता है
धीरे धीरे मचल...
रूठकर पहले जी भर सताऊँगी मैं
जब मनाएँगे वो, मान जाऊँगी हैं
मुझको करने दे, करने दे सोलह सिंगार
कोई आता है
धीरे धीरे मचल...
मुझको छूने लगीं उसकी परछाइयाँ
दिलके नज़दीक बजती हैं शहनाइयाँ
मेरे सपनों के आँगन में गाता है प्यार
कोई आता है
धीरे धीरे मचल...