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धुँआ बन बन के उठती है हमारे आह सीने से / सिया सचदेव

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धुँआ बन बन के उठती है हमारे आह सीने से
परेशान हो गए ऐ ज़िन्दगी घुट घुट के जीने से

हमें तूफ़ान से टकरा के दो दो हाथ करने हैं
जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाए सफ़ीने से

चले तो थे निकलने को पलक पर थम गये आँसू
छुपाए हैं हज़ारों दर्द ये बेहद करीने से

दुआ से आपको अपनी वो मालामाल कर देगा
लगाकर देखिए तो आप भी मुफ़लिस को सीने से

मुझे रोते हुए देखा दिलासा यूँ दिया माँ ने
उतर आएगी आँगन में परी चुपचाप जीने से

जो दिल की बात है दिल में न रखिये कह दिया कीजे
सिया होगा न कुछ हासिल कभी ये अश्क़ पीने से