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धुँआ (32) / हरबिन्दर सिंह गिल
Kavita Kosh से
क्या इस धुएँ की क्रूरता पर
कोई कानूनी प्रतिबंध लगाकर
इसे खत्म कर सकते हैं ।
अथवा इसकी विनाशलीला पर
कड़ी सजा का भय देकर
इसे कम कर सकते हैं ।
नहीं, यह धुँआ
न किसी कानूनी प्रतिबंध से
न किसी सजा के भय से
और न ही
समाज निष्कासन के आरोप से
कम हो सकता है ।
यह धुँआ तो हमेशा के लिए
अपने आप ही
मिटकर रह जाएगा
यदि मानव अपने धर्म की अहं मिटा ले ।