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धुआँधार / असंगघोष
Kavita Kosh से
सर्पाकार बहती
एक वेगवान नदी
पानी भरी संगमरमरी खाई में
धड़ाम से गिर पड़ी
नदी के गिरने से
चारों ओर शोर मचा
घर्षण हुआ
खाई का पानी
धुआँ-धुआँ धार हो उठा
मैं हठात् खड़ा देखता रहा
इस तरह नदी का गिरना
चंद ही कदमों के बाद
नदी का गिरना न गिरना
बराबर हो गया
वह फिर सरपट भागने लगी
जैसे उसे कुछ हुआ ही न हो!