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धुआँ / मख़दूम मोहिउद्दीन

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जन्नत ख़ाक<ref>धरती</ref> पे जिस रात उतर आई थी
बदलियाँ रहमते यज़दा<ref>ईरान के पुराने अग्निपूजक</ref> की जहाँ छाई थी ।
इशरत-ओ-ऐश<ref>ऐश्वर्य</ref> की जिस जा के फ़रादानी<ref>ज़रूरत से ज़्यादा</ref> थी
जिस जगह जल्वा फिगन<ref>दर्शन देने वाला</ref> रूहे जहाँबानी<ref>राज्य</ref> थी ।

        हाँ, वहीं मेरे दिले ज़ार ने ये भी देखा
        हाँ, मेरी चश्मे गुनहगार ने ये भी देखा
        ख़ूने दहकाँ में इमारत के सफीने थे रवाँ ।
        हर तरफ़ अहल<ref>जनता</ref> की जलती हुई म‍इयत का धुआँ ।

शब्दार्थ
<references/>