भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धुन ये है / कृष्ण बिहारी 'नूर'
Kavita Kosh से
धुन ये है आम तेरी रहगुज़र होने तक
हम गुज़र जाएँ ज़माने को ख़बर होने तक
मुझको अपना जो बनाया है तो एक और करम
बेख़बर कर दे ज़माने को ख़बर होने तक
अब मोहब्बत की जगह दिल में ग़मे-दौरां है
आइना टूट गया तेरी नज़र होने तक
ज़िन्दगी रात है मैं रात का अफ़साना हूँ
आप से दूर ही रहना है सहर होने तक
ज़िन्दगी के मिले आसार तो कुछ ज़िन्दा में
सर ही टकराईये दीवार में दर होने तक