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धूपोॅ सें पाकलोॅ जाय सभ्भे टा बाल / राकेश रवि

धूपोॅ सें पाकलोॅ जाय सभ्भे टा बाल
बितलोॅ जाय हमरोॅ छै सालोॅ पर साल

देखी केॅ हुनकोॅ चनरमा रं रूप
कत्तेॅ दिन रहबै वै कहै रहो ‘चूप’
आपनोॅ कपार हम्में आपनै धुनै छी
बितलोॅ जाय साले साल बैठी देखै छी
हालोॅ सें होय गेलां हम्में बेहाल

नै होय छै आबेॅ कुछ हमरा बरदास
कत्ते लगैबै बेरहमी के आस
आपनोॅ लोर आपनै सें हम्में पोछै छी
की करबै? बैठी केॅ खाली सोचै छी
नै ओकरे सुधरलै, नै हमरे ही चाल

कत्ते गरब छेलोॅ आपनोॅ ई देश पर
लोगोॅ के धोॅन-धरम लोगोॅ के भेष पर
आपनोॅ सरकार खाली फूटे के मालिक
करवावै देशोॅ-समाजोॅ में झिक-झिक
रोजे खिचवावै छै हमरे टा खाल