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धूप आती रही इस काँच के घर में खुद ही / नोमान शौक़
Kavita Kosh से
धूप आती रही इस काँच के घर में खुद ही
वो गिरफ्तार हुआ मेरे असर में खुद ही
तुम तो बस हाथ हिलाते हो गुज़र जाते हो
शहर आ जाते हैं वहशत के असर में खुद ही
हम तो अब भी हैं उसी तन्हा-रवी<ref>अकेले चलने</ref> के कायल
दोस्त बन जाते हैं कुछ लोग सफ़र में खुद ही
हर तसव्वुर को बदन देने में मसरूफ़ हूँ मैं
ख्वाब जागे हैं मिरे दस्ते-हुनर<ref>हुनर भरा हाथ</ref> में खुद ही
क्यों चले आए हो जलता हुआ सामान लिए
हम तो रहते हैं मियाँ मोम के घर में खुद ही
शब्दार्थ
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