भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धूप आती रही इस काँच के घर में खुद ही / नोमान शौक़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धूप आती रही इस काँच के घर में खुद ही
वो गिरफ्तार हुआ मेरे असर में खुद ही

तुम तो बस हाथ हिलाते हो गुज़र जाते हो
शहर आ जाते हैं वहशत के असर में खुद ही

हम तो अब भी हैं उसी तन्हा-रवी<ref>अकेले चलने</ref> के कायल
दोस्त बन जाते हैं कुछ लोग सफ़र में खुद ही

हर तसव्वुर को बदन देने में मसरूफ़ हूँ मैं
ख्वाब जागे हैं मिरे दस्ते-हुनर<ref>हुनर भरा हाथ</ref> में खुद ही

क्यों चले आए हो जलता हुआ सामान लिए
हम तो रहते हैं मियाँ मोम के घर में खुद ही

शब्दार्थ
<references/>