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धूप ऊपर, यह अनोखा गाँव / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र

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धूप ऊपर और नीचे छाँव
यह अनोखा गाँव

बंद दरवाजे
धुआँते खेत-घर-दीवार
पोखरों में जल नहीं है
सिर्फ है मँझधार

बँधी पतवारें डुबोतीं नाव
यह अनोखा गाँव

रोज़ दिन
पगडंडियों पर बैठ
गिनते रात
नींद के जंगल
हवा से कर रहे हैं बात

बिना-यात्रा थके-हारे पाँव
यह अनोखा गाँव

भीड़ सूरज को उठाये
ढूँढ़ती आकाश
नींद में गहरे अँधेरे
हो रहे हैं खास

आँख-मूँदे चल रहे हैं पाँव
यह अनोखा गाँव