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धूप के बारे में-2 / दिनेश डेका
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पूस की शाम, मेघ चीरकर
मेरे पुकारने से ही आती है धूप
धूप मेरी परिचित है
धूप मेरी जन्म की दूत
धूप मेरी आत्मा का अनोखा स्पंदन।
मूल असमिया से अनुवाद : दिनकर कुमार