धूप कोठरी के आईने में खड़ी
हँस रही है
पारदर्शी धूप के पर्दे
मुस्कराते
मौन आँगन में
मोम सा पीला
बहुत कोमल नभ
एक मधुमक्खी हिलाकर फूल को
बहुत नन्हा फूल
उड़ गई
आज बचपन का
उदास माँ का मुख
याद आता है
धूप कोठरी के आईने में खड़ी
हँस रही है
पारदर्शी धूप के पर्दे
मुस्कराते
मौन आँगन में
मोम सा पीला
बहुत कोमल नभ
एक मधुमक्खी हिलाकर फूल को
बहुत नन्हा फूल
उड़ गई
आज बचपन का
उदास माँ का मुख
याद आता है